Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज# रंग भर दिया जिंदगी मे

शहर के नामी होटल के हाॅल में सुप्रसिद्ध कलाकार मनी की चित्रकला प्रदर्शनी का लोकार्पण था। विनिता भी आमंत्रित थी। चित्रकला में रूचि बहुत थी पर सी.ए. बनने के चक्कर में सब छूट गया था। आज उसने मन बना लिया जाने का क्योंकि थीम थी 'नारी उत्पीड़न'। उससे भी ज्य़ादा आकर्षण था उस कलाकार के नाम में 'मनिका'। एकदम अपनापन लगा इस नाम से मानो किसी अपने ने प्यार से सहलाया हो। उसने व्यस्तता के बाद भी मन बना लिया इस प्रदर्शनी को देखने जाने का। उसे जिज्ञासा थी देखने की क्या-क्या प्रदर्शित किया है और कैसे?
नियत समय पर पहुँच गई,अकेले ही पति सौरभ को साथ चलने कहा पर उसे इन सब में कोई रूचि न थी सो वक्त बर्बाद करना नहीं चाहते थे। बल्कि उन्होने तो उसे भी कहा अगर फ्री हो तो चलो फिल्म देखने चले? पर आज तो विनीता एक अलग ही मूड मे थी। न जाने क्या था जो उसे खींच रहा था।

वहाँ पहुँचकर अंदर जाने को हुई तो सामने ही खड़े मम्मी पापा को देख विनिता को घोर आश्चर्य हुआ। उसने प्रश्नों की झड़ी लगा दी आप लोग यहाँ.. मुझे बताया भी नहीं? कब आए अहमदाबाद?
वे जवाब देते इससे पहले ही एक युवती मुस्कुराती हुई नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े आई उसके साथ एक महिला भी थी। उसने कहा दीदी हमने ही मना किया था आपको बताने को।

उस महिला ने कहा हमने बुलाया है भाभी और भैया को। गौर से देखने पर विनिता पहचान गई ' जानकी आंटी' ....आप?
हाँ बेटा, इसे पहचाना मनिका।
ओहहहह मनिका, तुम्हारी प्रदर्शन लगी है। वाह ! कैसे हुआ इतना सब ? कमाल कर दिया तुमने तो। छुटकी सी मनि इतना बड़ा धमाल!
हाँ दीदी बचपन में आप जो अपनी पुरानी रंगीन पेंसिलें दिया करती थी न, उसे मैं बहुत सहेजकर रखती और खूब चित्र बनाती। पढ़ाई तो ज्यादा कर न सकी दसवीं के बाद माँ के साथ घरेलू काम करती पर चित्र जरूर बनाती थी। आपकी शादी के बाद आंटीजी ने आपके सारे रंग रोगन के सामान मुझे दिए। मेरे लिए तो वो सब एक खजाना था। 'अंधा क्या
चाहे दो आँखे'

मेरी शादी सोलह साल में ही कर दी गई एक अधेड़ उम्र के आदमी से। पिता का फरमान था माँ और मेरी एक न चली। उन्होने उस आदमी से कर्ज लिया था काम धंधा शुरू करने के लिए पर न तो काम शुरू किया और न ही कर्ज लौटाया। मैं बलि का बकरा बन गई। उस आदमी ने मुझे देखा घर पर जब तगादे के लिए आया था, और पिता को कह दिया इससे मेरी शादी कर दे तेरा कर्जा माफ। जब माँ ने विरोध किया तो कहने लगा " मैं चाहूँ तो उठवा भी सकता हूँ और मन भर जाए तो फेंक जाऊँ तेरे दरवाजे। तब क्या करेगी? इज्जत दे रहा हूँ तो नाटक सूझ रहा है"।

क्या करते हो गया ब्याह पर उसने मुझे कभी पत्नी नही रखैल बनाकर रखा। एक गंदे सी बस्ती में अलग एक कमरे के घर में। दम घुटता था मेरा। साल बीतते मैं माँ बनने वाली थी तो उसने जबरदस्ती मेरा एबार्शन करा दिया। खून के आँसू रोते दिन कट रहे थे। फिर एक दिन पता चला किसी ने उसकी हत्या कर दी था कोई मवाली उसी की तरह जो चंद रूपयों की हेरा फेरी के लिए उसे मार डाला। मैं तो खुशी से झूम उठी और फौरन माँ के पास लौट आई कैद से जो छूटी थी। घर आने पर माँ ने बताया पिताजी भी नही रहे। जो भी हो बाप का मन था बेटी की दुर्दशा अपने हाथों करने का पश्चाताप था।

दिन रात शराब पीते रहते, किडनी फेल हो गई और चले गए माँ को अकेला छोड़कर। बस दीदी उसके बाद शुरू हुआ मेरे संघर्षो और मेहनत का दौर पढ़ी लिखी तो न थी तब अंकल आंटी जी ने मुझे सहारा दिया। अपनी कला को ही पहचान बनाने की सलाह दी। उनके बताए रास्ते पर मैं आँख मूंदकर चलने लगी खूब मेहनत की। धीरे-धीरे मुझे काम मिलने लगा। 'कलाकृति' नाम से अपना एक प्रशिक्षण केंद्र भी खोला जो खूब चल निकला। आज मैं ऑनलाइन क्लास भी लेती हूँ विदेशी बच्चो को भी चित्रकला सिखाती हूँ।

अंकल जी ने मुझे चित्रकला के लिए प्रेरित किया साथ दिया। मुझे प्रशिक्षित कराया चित्रकला में और एक संस्था से जोड़ दिया। उस संस्था ने ही यह आयोजन किया है। दीदी कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए मुझे इन्ही रंगीन पेंसिलों की बदौलत। आपकी रंगीन पेंसिलों का कमाल है। यही है इस मनि की कहानी।
विनिता की आँखें नम हो गई, रंगीन पेंसिलें मनि के जीवन में सफलता का सुनहरा रंग भर रहीं थीं। मम्मी पापा को गले लगाया कि उन्होने एक जीवन को रंगीन बना दिया था।

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3 Comments

Gunjan Kamal

15-Mar-2023 12:49 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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बहुत खूब

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